आप भारत में किसी शौपिंग मॉल में चले जाएँ आपको वहां जाकर लगेगा कि आप किसी यूरोपियन देश में हैं क्योंकि सारे स्टोर्स के नाम अंग्रेजी में मिलेंगे जैसेकि wills , peter england ,ven heusan ,arrow ,UCB इत्यादि ये सभी नाम विदेशी हैं और कुछ नाम अगर स्वदेशी हैं तो वो भी अंग्रेजी में ही लिखे हुए मिलेंगे
क्या हमें हिंदी में लिखने में शर्म आती है. भारत में फिल्में हिंदी हैं पर पोस्टर पर नाम अंग्रेजी में लिखा जाता है। सारे पुरस्कार समारोह में अंग्रेजी बोली जाती है
आज की तारीख में सिर्फ नरेंद्र मोदी और कुछ ही लोग ही हिंदी बोलते हैं. क्या भारत में ग़ुलामी की जड़ें इतनी मजबूत हो गयी हैं की हम अपनी राष्ट्रभाषा भूलते जा रहें हैं. हम अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढने में गर्व महसूस करते हैं. क्या आपको पता है की विश्व के जीतें भी विकसित देश हैं जैसे जर्मनी ,जापान ,फ्रांस ,रूस वहां मेडिकल और इंजीनियरिंग उनकी मातृभाषा में पढाई जाती है.अगर अंग्रेजी पढ़ने से ही विकास होता तो ये सारे देश विकसित नहीं होते।
अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए विश्व के किसी देश ने भी अंग्रेजी को नहीं अपनाया । भारत को छोड़ हर मुल्क की आज अपनी भाषा है। इसी कारण विदेश दौरे पर गये भारतीय प्रतिनिधि द्वारा अपना संबोधन अंग्रेजी में देते ही यह सुनना पड़ा कि क्या भारत की अपनी कोई भाषा नहीं ? इस अपमान के बावजूद भी हम आज तक नहीं चेत पाये। कितना अच्छा सभी भारतवासियों को लगा था जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी विश्व मंच पर अपना वकतव्य हिन्दी में दिये थे । आज जब अपने ही घर में हिन्दी अपने ही लोगों द्वारा उपेक्षित होती है, तो स्वाभिमान को कितना ठेस पहुंचता होगा, सहज अनुमान लगाया जा सकता। काश यह अनुमान उन देशवासियों को होता जो इस देश में जन्म लेकर विदेशी भाषा अंग्रेजी को अहमियत देते है।
क्या हमें हिंदी में लिखने में शर्म आती है. भारत में फिल्में हिंदी हैं पर पोस्टर पर नाम अंग्रेजी में लिखा जाता है। सारे पुरस्कार समारोह में अंग्रेजी बोली जाती है
आज की तारीख में सिर्फ नरेंद्र मोदी और कुछ ही लोग ही हिंदी बोलते हैं. क्या भारत में ग़ुलामी की जड़ें इतनी मजबूत हो गयी हैं की हम अपनी राष्ट्रभाषा भूलते जा रहें हैं. हम अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढने में गर्व महसूस करते हैं. क्या आपको पता है की विश्व के जीतें भी विकसित देश हैं जैसे जर्मनी ,जापान ,फ्रांस ,रूस वहां मेडिकल और इंजीनियरिंग उनकी मातृभाषा में पढाई जाती है.अगर अंग्रेजी पढ़ने से ही विकास होता तो ये सारे देश विकसित नहीं होते।
अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए विश्व के किसी देश ने भी अंग्रेजी को नहीं अपनाया । भारत को छोड़ हर मुल्क की आज अपनी भाषा है। इसी कारण विदेश दौरे पर गये भारतीय प्रतिनिधि द्वारा अपना संबोधन अंग्रेजी में देते ही यह सुनना पड़ा कि क्या भारत की अपनी कोई भाषा नहीं ? इस अपमान के बावजूद भी हम आज तक नहीं चेत पाये। कितना अच्छा सभी भारतवासियों को लगा था जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी विश्व मंच पर अपना वकतव्य हिन्दी में दिये थे । आज जब अपने ही घर में हिन्दी अपने ही लोगों द्वारा उपेक्षित होती है, तो स्वाभिमान को कितना ठेस पहुंचता होगा, सहज अनुमान लगाया जा सकता। काश यह अनुमान उन देशवासियों को होता जो इस देश में जन्म लेकर विदेशी भाषा अंग्रेजी को अहमियत देते है।
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